98 प्रतिशत लोगों के दस्तावेज मिलना आंदोलन की जीत, फिर भी वोट कटने का खतरा बरकरार-दीपांकर भट्टाचार्य

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भाकपा माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने आज पटना में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए चुनाव आयोग पर एक बार फिर तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा कि आयोग सुप्रीम कोर्ट को भी गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. संवाददाता सम्मेलन में उनके साथ माले राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा, एमएलसी शशि यादव और समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर भी शामिल थे।

22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि राजनीतिक दलों के बीएलए सक्रिय नहीं हैं. आयोग ने यह दावा किया कि एक बीएलए एक दिन में 10 आपत्तियाँ दर्ज कर सकता है और सभी राजनीतिक दलों के कुल मिलाकर 1.6 लाख बीएलए हैं, तो प्रतिदिन 16 लाख आपत्तियाँ दर्ज हो सकती हैं.
लेकिन आयोग ने यह नहीं बताया कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही 18 अगस्त को राजनीतिक दलों को कारण सहित विलोपन सूची मिली थी. चार दिन के भीतर यह कहना कि राजनीतिक दल सक्रिय नहीं हैं, सरासर झूठ है।

सबसे अधिक लगभग 60,000 बीएलए भाजपा के हैं. यह कहा जाता है कि भाजपा के बीएलए वोट दिलाने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. तो क्या 65 लाख हटाए गए मतदाताओं में भाजपा को एक भी नाम आपत्ति योग्य नहीं लगा? या फिर मान लिया जाए कि एसआईआर प्रक्रिया भाजपा को ही लाभ पहुंचाने की कवायद है? भाजपा को इसका जवाब देना होगा।

माले के बीएलए की संख्या चुनाव आयोग लगभग 1,500 बता रहा है, जबकि बिहार के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के डैशबोर्ड पर यह संख्या 2,500 दर्ज है. लगभग 1,000 बीएलए अब तक ‘पेंडिंग’ रखे गए हैं. एसआईआर प्रक्रिया को दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन आयोग ने इन बीएलए को अब तक मान्यता नहीं दी है. उल्टे माले पर ही सवाल खड़े किए जा रहे हैं. केवल माले ने ही अधिकृत रूप से आपत्ति दर्ज करने का काम किया है, जिसमें भी घोटाला चल रहा है. अब हमारे एक बीएलए ने एक शपथ पत्र के साथ एक से अधिक लोगों का फाॅर्म-6 भरा, लेकिन आयोग उसे एक ही आपत्ति मान रहा है।

वर्तमान नियम के अनुसार एक बीएलए एक दिन में केवल 10 और अधिकतम 30 मतदाताओं की आपत्ति ही दर्ज कर सकता है. इन 30 की संख्या में नए मतदाताओं द्वारा भरे जाने वाले फाॅर्म भी शामिल हैं. ऐसे में जिन बूथों पर 30 से अधिक विसंगतियां हैं, उनका क्या होगा? यह साफ संकेत देता है कि चुनाव आयोग की मंशा ठीक नहीं है।

भोजपुर से एक उदाहरण मिला है -कृष्ण दयाल सिंह, एक भोजपुरी कवि, जिन्होंने 2024 के चुनाव में मतदान किया था. उनका नाम न विलोपित सूची में है, न ही ड्राफ्ट सूची में. उनका एपिक नंबर है MTH1209998. चुनाव आयोग को इस नई ‘त्रिशंकु’ श्रेणी पर जवाब देना होगा।

स्थायी रूप से शिफ्टेड’ श्रेणी में विलोपित नामों में महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में 7 लाख अधिक है, जो अत्यंत चैंकाने वाला और अविश्वसनीय है. क्या महिलाओं का माइग्रेशन पुरुषों से अधिक हो गया? या फिर पुरुषों के नाम पहले ही हटा दिए गए थे और अब महिलाओं के नाम हटाए जा रहे हैं? दूसरा यह हो सकता है कि शादी के बाद बिहार के अंदर ही एक जगह से दूसरी जगह महिलाएं चली गई हों. और हुआ यह हो कि यहां भी नाम कट गया और दूसरी जगह भी नाम न बचा हो. चुनाव आयोग सही ढंग से इसकी जानकारी दे।

18 अगस्त को विलोपन सूची जारी हुई और 31 अगस्त को आपत्तियों की अंतिम तिथि तय की गई है. ऐसे में प्रवासी मजदूर या दूरदराज के लोग आपत्ति कैसे दर्ज करा पाएंगे? यह समयसीमा बढ़ाई जानी चाहिए। चुनाव आयोग का यह कहना कि 98 प्रतिशत एसआईआर लिस्ट में आए नामों के दस्तावेज मिल चुके हैं, हमारे आंदोलन की दूसरी बड़ी जीत है. पहली जीत उस समय मिली थी जब जुलाई में दस्तावेज मांगना बंद कर केवल गणना प्रपत्र भरने की बात स्वीकार की गई थी।

फिर भी 2 प्रतिशत यानी करीब 15 लाख मतदाताओं के दस्तावेज जमा नहीं हुए। आयोग यह स्पष्ट नहीं कर रहा कि फार्म-6 से दर्ज की गई लगभग 3 लाख आपत्तियाँ नए मतदाताओं की हैं या विलोपित मतदाताओं की। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि बड़ी संख्या में आपत्तियाँ दर्ज नहीं हो सकी हैं.

25 सितंबर को एक और सूची जारी होगी, और मात्र 5 दिन आपत्ति दर्ज करने के लिए मिलेंगे। इतनी बड़ी प्रक्रिया के लिए यह समय अपर्याप्त है. इसलिए हम सभी मतदाताओं से अपील करते हैं कि वे सजग रहें, सतर्क रहें। बिहार से लेकर पूरे देश में अब एक नारा गूंज रहा है – ‘वोट चोर गद्दी छोड़. लेकिन हमें हर कदम पर लड़ना होगा।

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