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Desk: अस्सी के दशक में समाज के कमजोर लोगों के शोषण की कहानी पर केंद्रित निर्माता प्रकाश झा की पहली चर्चित फिल्म दामुल में ‘बुधवा’ (बंधुआ मजदूर) का रोल करने वाले पटना शहर के रंगकर्मी ओम कपूर मुफलिसी में जीवन बिता रहे हैं। रंगमंच का सफर करते हुए 1984 में बॉलीवुड फिल्म में अहम किरदार निभाने वाले इस कलाकार को फिलवक्त रोटी अखबार बेचकर जुटानी पड़ रही है। मलाल इस बात का है कि सरकार से कोई गुजारा भत्ता नहीं मिलता जिससे उनके समेत गरीबी का दंश झेल रहे कलाकारों की जिंदगी चलती रहे।

स्‍नातक और एलएलबी कर चुके हैं कपूर

दामुल फिल्म में लोकप्रियता हासिल करने के बाद ओम को रंगमंच से फिल्मी दुनिया में एक नई पहचान मिली थी, लेकिन यह ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकी। स्नातक और एलएलबी पास इस कलाकार के जेहन में संघर्षो के बाद भी रंगमंच जिंदा है। उन्होंने 1985 में ‘कलाकुंज’ नाट्य-संस्था बनाई जो पैसे के अभाव में ऑक्सीजन पर है। वे पॉकेट मनी बचाकर नाटकों का मंचन करने में लगे हैं। बीते साल आधी रात का सवेरा और लोहा सिंह नाटकों का मंचन कर नए कलाकारों को मौका दिया है।

रंगमंच ने दिया बढ़ने का मौका

बिहार के छपरा के बैनया बड़का गांव के रहने वाले ओम कपूर गांव से पिता के साथ 1965 में पटना आ गए थे। उनके मोहल्ले में बिहार आर्ट थिएटर के संस्थापक स्वर्गीय अनिल मुखर्जी का आवास था। स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद पटना में मुखर्जी का साथ मिला। वे रंगमंच की बारीकियों से अवगत कराने के लिए कालिदास रंगालय ले जाते थे। 1979 में अनिल कुमार मुखर्जी के सहयोग से अभिनय में निपुण होने के बाद नाटकों में काम करना शुरू किया। कालिदास रंगालय में ‘थैंक्यू मिस्टर ग्लाड’ नाटक में कैदी की भूमिका निभा दर्शकों का दिल जीता था।

1984 में हुई प्रकाश झा से मुलाकात

55 वर्षीय ओम कपूर कहते हैं कि फिल्म निर्देशक प्रकाश झा से 1984 में होटल प्रेसीडेंट में पहली मुलाकात हुई थी। वे उन दिनों फिल्म ‘दामुल’ बनाने को लेकर पटना के रंगकर्मियों से मिल रहे थे। मुझे अवसर दिया। फिल्म की शूटिंग मोतिहारी के छपवा में एक माह हुई थी। इस फिल्म में एनएसडी के मनोहर सिंह, फिल्म अभिनेता अन्नू कपूर, अभिनेत्री दीप्ति नवल के साथ काम करने का मौका मिला।

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