वादों के पोस्टर धरे रह गए, हल्की बारिश में ही बह गया ‘विकास’ चुनाव से पहले पंपलेट में वादों की भरमार, बाद में सब नकार

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रक्सौल, संवाददाता
शहर की सड़कों का हाल हल्की बारिश होते ही बेहाल हो जाता हैं। टूटी पाइप लाइन से पानी सड़कों पर बहता है, अधूरी नालियों की गंदगी गलियों को भर देती है। लेकिन ऐसी स्थिति पर अब जनता, उसके प्रतिनिधि के साथ-साथ सामाजिक संस्थाएं भी चुप हैं। हर चुनाव से पहले स्थानीय नेता बड़े-बड़े वादों वाले रंगीन पंपलेट छपवाकर घर-घर बांटते हैं। इनमें लिखा होता है। हर गली में लाइट, हर घर में पानी, 100 दिन में विकास, जनता की सेवा ही मेरा धर्म पर चुनाव जीतते ही न वादे याद रहते हैं, न जनता की समस्याएं।
एक पंपलेट में साफ तौर पर लिखा गया था : जल, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य हमारी प्राथमिकता हैं। हर गली, हर मोहल्ला होगा आदर्श। लेकिन वार्डों की हालत यह है कि आज भी लोग कीचड़ और गंदगी के बीच रह रहे हैं। बच्चों के स्कूल जाने की राहें दलदल में तब्दील हो गई हैं।
दरअसल, यही संस्थाएं चंद दिन बाद उन्हीं नेताओं को सम्मानित करने में जुट जाती हैं, उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाने चाहिए। समारोहों में माला पहनाकर, शॉल ओढ़ाकर और तस्वीरें खिंचवाकर ये संस्थाएं खुद को नेताओं का करीबी दिखाने की होड़ में लगी रहती हैं।
इन तस्वीरों को फिर सोशल मीडिया पर इस अंदाज़ में पोस्ट किया जाता है। माननीय विधायक/पार्षद जी को सम्मानित करते हुए गर्व महसूस हो रहा है। जबकि उसी वार्ड में नाली टूटी है, पानी सड़कों पर बह रहा है, और जनता हलकान है।
आज सवाल यह है कि क्या सामाजिक संगठन जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछने की बजाय सिर्फ फोटो सेशन का मंच बनकर रह जाएंगे? यदि वे ही आंखें मूंद लेंगे तो जनता की आवाज कौन बनेगा?
यह स्थिति उस सोच की है जो हर चुनाव से पहले वादों का बाजार गर्म करती है, और फिर चुनाव बाद उसी जनता की परेशानियों से मुंह मोड़ लेती है।
यदि समाज के तथाकथित सजग हिस्से सामाजिक संस्थाएं भी चुप्पी ओढ़ लें, तो यह चुप्पी अंततः अन्याय की ताकत बन जाती है।

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