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भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की टोली में रंगमंच पर नाट्य कला का जादू बिखेरने और लौंडा नाच की परंपरा शुरु करने वाले शख्स रामचंद्र मांझी की कला को मिला सम्मान. 95 साल की उम्र में आखिर मिल हीं गया पद्मश्री सम्मान. इस रंगमंच के संस्थापक भिखारी ठाकुर भी पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किये गये थे.

छपरा के रामचंद्र मांझी भिखारी ठाकुर की नाट्य मंडली विदेशिया में शामिल थे. जिसमें रामचंद्र मांझी वेश्या की भूमिका निभाते थे.जानकारों की माने तो लौंडा नाच की परंपरा की शुरुआत रामचंद्र मांझी ने हीं की थी. दो साल पहले उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया था.. प्रसिद्ध नाटककार स्वर्गीय भिखारी ठाकुर की परंपरा को जीवित रखने वाले रामचंद्र मांझी उन कलाकारों की एक आस बनें है जो सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में खोती जा रही विधाओं के संरक्षण में दिन रात कार्यरत हैं.

रामचंद्र मांझी की सबसे खाश बात ये रही कि अपनी नाट्य मंडली में वो एकलौते दलित कलाकार थे. बिहार और उत्तर प्रदेश से जुड़े कलाकारों को मिलने वाले इस सर्वोच्च सम्मान में रामचंद्र पहले ऐसे कलाकार हैं जो दलित समाज से आते हैं. यह सम्मान उनकी लौंडा नाच परंपरा के साथ दलित समाज के कलाकारों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में किये जा रहे कार्य को लेकर भी सकारात्मक सन्देश देता प्रतीत होता है.उम्र के इस पड़ाव पर हीं सही लेकिन देर आए दुरुस्त आए वाली लोकोक्ति आखिरकार लागू हुई और रामचंद्र मांझी जमीनी कार्य का प्रतिफल उन्हें मिल हीं गया.

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