नालंदा: बिहार के प्राचीन नगर राजगीर के जंगल, जो कभी अपनी दुर्लभ औषधीय वनस्पतियों के लिए विश्व प्रसिद्ध थे, आज अवैध कटाई और प्रशासनिक उदासीनता के चलते गंभीर संकट में हैं। पड़ताल में सामने आया है कि वन विभाग के दावों के विपरीत, यहां के बहुमूल्य जंगलों को बिना रोक-टोक के काटा जा रहा है।
हर रोज दर्जनों महिलाएं और पुरुष इन जंगलों से अवैध रूप से लकड़ियां काट रहे हैं। सूर्य कुंड के पीछे स्थित पिकनिक स्पॉट पर इन लकड़ियों का उपयोग खाना पकाने में किया जा रहा है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इन लकड़ियों की आपूर्ति राजगीर शहर और आसपास के क्षेत्रों में भी की जा रही है।
बता दें कि 2008 में मुख्यमंत्री के निर्देश पर हेलीकॉप्टर से बीज छिड़काव का महत्वाकांक्षी प्रयास किया गया था। वन विभाग ने शीशम, सागवान, पीपल, बरगद, अर्जुन, वकैन, अमलतास जैसी कई प्रजातियों के पौधे लगाए। लेकिन वर्तमान स्थिति इन प्रयासों की विफलता को दर्शाती है।
राजगीर के जंगल में जड़ी-बूटियों का खजाना है। यहां जंगली प्याज, सतमूली और हरमदा जैसी दुर्लभ औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं। पौराणिक ग्रंथों में भी इन जड़ी-बूटियों का उल्लेख मिलता है।
जब इस मामले में जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी राजकुमार एम से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। वन विभाग का दावा है कि अवैध कटाई पर रोक लगाई गई है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।
गतिविधियों को रोकने के लिए हो रही कार्रवाई के दावे के बीच जंगल काटने का सिलसिला लगातार जारी है। फिर भी, राजगीर के रेंजर रंजन शर्मा ने बताया कि वन विभाग द्वारा लगातार ऐसी गतिविधियों के रोकथाम को लेकर कार्रवाई की जा रही है।
पर्यावरण विशेषज्ञ राजीव पांडेय का मानना है कि यदि यही स्थिति रही, तो आने वाले समय में न केवल इन दुर्लभ प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा, बल्कि क्षेत्र की पारिस्थितिकी को भी काफी क्षति पहुंचेगी।