₹5 लाख के कर्ज में डूबता शहरी मध्यम वर्ग! बढ़ती महंगाई ने बचत नहीं, उधारी बना दी ज़िंदगी 

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Highlights
  • • प्रति व्यक्ति कर्ज ₹4.8 लाख पार • 55% ऋण असुरक्षित • युवा वर्ग सबसे ज्यादा संकट में • NPA का बड़ा खतरा

भारत में घरेलू कर्ज का खतरनाक उछाल: 42% GDP तक पहुंचा 

भारत की आर्थिक तस्वीर तेजी से बदल रही है, लेकिन यह बदलाव आम नागरिक के लिए राहत नहीं, बल्कि चिंता बनता जा रहा है। एक समय जिसे बचत करने वाला देश कहा जाता था, वही भारत अब रिकॉर्ड स्तर पर उधारी लेने वाला देश बनता जा रहा है। रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक भारत में घरेलू ऋण 2024 के अंत तक GDP के 42 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, जो 2015 में मात्र 26 प्रतिशत था। यानी सिर्फ 9 वर्षों में घरेलू कर्ज में ऐतिहासिक उछाल आया है।

महंगाई, किराया, स्कूल फीस, दवाइयां, परिवहन, ईंधन और रोजमर्रा की जरूरतें इतनी महंगी हो चुकी हैं कि अब सिर्फ गरीब नहीं, बल्कि शहरी निम्न-मध्यम वर्ग भी कर्ज लेकर गुज़ारा कर रहा है। आज जीवन यापन की लागत कोई भविष्य का संकट नहीं, बल्कि वर्तमान की सबसे बड़ी सच्चाई बन चुकी है।

प्रति व्यक्ति कर्ज ₹4.8 लाख पार, आय से दोगुनी रफ्तार 

केवल दो वर्षों में प्रति व्यक्ति औसत ऋण में 23 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। वर्ष 2023 में जहां यह औसत 3.9 लाख रुपये था, वहीं मार्च 2025 तक यह 4.8 लाख रुपये तक पहुंच गया। यह वृद्धि राष्ट्रीय आय की गति से लगभग दोगुनी है।

इसका सीधा मतलब यह है कि भारतीय परिवार जितनी तेजी से कमा रहे हैं, उससे कहीं अधिक तेजी से उधार बढ़ रहा है। इसका बड़ा हिस्सा गैर-आवासीय खुदरा ऋणों का है, जिनमें शामिल हैं:

• क्रेडिट कार्ड

• व्यक्तिगत ऋण

• ऑटो लोन

• स्वर्ण ऋण

ये मिलकर कुल ऋण का लगभग 55 प्रतिशत बनाते हैं, जबकि गृह ऋण का हिस्सा सिर्फ 29 प्रतिशत रह गया है।

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बचत पर कर्ज भारी, युवा और वेतनभोगी सबसे ज्यादा संकट में 

शिक्षा, आवास और छोटे व्यापार के लिए लिया गया कर्ज भविष्य निर्माण करता है, लेकिन आज जो कर्ज बढ़ रहा है वह केवल वर्तमान जीवनशैली बनाए रखने के लिए है। युवा वर्ग और वेतनभोगी कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं क्योंकि उनकी बचत दर लगातार गिर रही है।

हाल ही में एक आईआईटीयन ने सोशल मीडिया पर लिखा कि टियर-3 शहरों में भी जीवन यापन की लागत असहनीय होती जा रही है। बुनियादी आवश्यकताएं भी आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं।

बड़े उधारकर्ता बना रहे संपत्ति, छोटे उधारकर्ता सिर्फ जी रहे हैं 

आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि देश में दो तरह के उधारकर्ता बन चुके हैं:

बड़े उधारकर्ता: जिनका क्रेडिट स्कोर 720 से ऊपर है और वे आवास व निवेश के लिए ऋण ले रहे हैं।

छोटे उधारकर्ता: जिनका स्कोर 720 से नीचे है और वे रोजमर्रा के खर्चों के लिए उधारी कर रहे हैं।

यही वजह है कि जहां बड़े वर्ग के लिए ऋण संपत्ति निर्माण का माध्यम बन रहा है, वहीं छोटे वर्ग के लिए यह कर्ज जाल बनता जा रहा है।

NPA का खतरा क्यों बढ़ रहा है? 

व्यक्तिगत ऋण या क्रेडिट कार्ड बिल का भुगतान न होने पर व्यक्ति का होम लोन या कार लोन भी NPA घोषित किया जा सकता है। यानी सिर्फ एक छोटा डिफॉल्ट भी पूरी आर्थिक स्थिति बिगाड़ सकता है।

50,000 रुपये से कम के व्यक्तिगत ऋण लेने वालों में से 60 प्रतिशत से अधिक लोगों ने सिर्फ एक साल में तीन बार से ज्यादा कर्ज लिया है। यह साफ संकेत है कि शहर भले बढ़ रहे हों, लेकिन लोग और ज्यादा कर्जदार और गरीब होते जा रहे हैं।

वैश्विक कर्ज संकट और भारत की स्थिति

• चीन का सार्वजनिक ऋण: 140% GDP

• वैश्विक सार्वजनिक ऋण: 2024 के अंत तक 93% GDP

• कुल वैश्विक कर्ज: 100 ट्रिलियन डॉलर से अधिक

भारत अभी इस तुलना में कम दिखता है, लेकिन जिस रफ्तार से घरेलू ऋण बढ़ रहा है, वह भविष्य के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।

आरबीआई के सख्त कदम 

आरबीआई ने हाल ही में बैंकों और एनबीएफसी को असुरक्षित ऋणों पर उच्च जोखिम भार लगाने का निर्देश दिया है, ताकि भविष्य में डिफॉल्ट से वित्तीय सिस्टम को बचाया जा सके।

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न्यूयॉर्क से सबक और भारत की राजनीति की खामी 

न्यूयॉर्क के हालिया मेयर चुनाव में जोहरान ममदानी ने जीवन यापन की लागत को चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बनाया। उन्होंने किराया, सार्वजनिक परिवहन, बच्चों की देखभाल और अमीरों पर टैक्स जैसी ठोस बातों को एजेंडा बनाया।

भारत की राजनीति अभी तक इस मुद्दे से आंखें चुराती रही है। यही कारण है कि जीवन यापन का संकट यहां राजनीतिक बहस का हिस्सा नहीं बन पाया।

निष्कर्ष 

भारत आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां परिवार बचत नहीं, सिर्फ उधारी के सहारे जी रहे हैं। यदि समय रहते वेतन, खर्च, सामाजिक सुरक्षा और कर्ज नीति पर संतुलन नहीं बनाया गया, तो यह संकट आने वाले वर्षों में सामाजिक विस्फोट का रूप ले सकता है।

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