Supreme Court vs Governor Delay: विधेयकों पर लंबी देरी पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी, राज्यों को मिली सीमित राहत

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सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की देरी पर अपनी समय-सीमा वापस ली, लेकिन राज्यों को राहत भी दी।
Highlights
  • • ओवैसी ने नीतीश-भाजपा सरकार को समर्थन देने की इच्छा जताई • सीमांचल को न्याय मिलने पर समर्थन की शर्त • पटना और राजगीर केंद्रित विकास मॉडल पर सवाल • AIMIM ने 5 सीटें दोबारा बरकरार रखीं • विधायकों पर निगरानी के लिए नई व्यवस्था लागू • सीमांचल की बाढ़, पलायन और भ्रष्टाचार को बताया बड़ा मुद्दा • ओवैसी ने कहा—पटना को संदेश सीमांचल से जाएगा

Supreme Court Governor Delay: सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ही समय-सीमा वापस ली, लेकिन ‘असाधारण हालात’ में राज्यों को दी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए पहले तय की गई अपनी समय-सीमा को वापस लेने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि न्यायालय कार्यपालिका की शक्तियों का अतिक्रमण नहीं कर सकता, इसलिए इस तरह की सख्त समय-सीमा न्यायपालिका के दायरे से बाहर है।

फिर भी, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब कोई राज्यपाल ‘लंबी, अस्पष्ट और अनिश्चित देरी’ का कारण बने, तब राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा सकती है।

इस फैसले ने केंद्र और राज्यों के बीच खड़े संवैधानिक विवाद पर अदालत को एक संतुलित भूमिका में ला खड़ा किया है—न तो पूरी तरह हस्तक्षेप, न पूरी तरह दूरी।

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Supreme Court Governor Delay: तमिलनाडु के 10 कानूनों पर बनी अनिश्चितता

8 अप्रैल के फैसले में अदालत ने तमिलनाडु के 10 विधेयकों पर राष्ट्रपति की स्वीकृति मान ली थी, लेकिन अब जब कोर्ट ने अपनी समय-सीमा वापस ले ली है, तो इन विधेयकों की स्थिति अस्पष्ट है।

कुछ संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि—

• कानूनों की गजट अधिसूचना हो चुकी है,

• इसलिए उन्हें स्वीकृत मान लिया जाना चाहिए।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई अंतिम शब्द अभी नहीं कहा है।

यह अनिश्चितता तमिलनाडु के राजनीतिक माहौल और सरकार-राज्यपाल संबंधों में तनाव का नया अध्याय खोलती है।

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Supreme Court Governor Delay: राज्यपालों की भूमिका पर दशकों पुराना विवाद

भारत के संघीय ढांचे में राज्यपाल की भूमिका लंबे समय से विवादों में रही है।

राज्यों में सरकारों की बर्खास्तगी जैसे मामलों पर 1990 के बोम्मई केस के बाद कुछ संतुलन तो आया, लेकिन अभी भी कई जटिलताएँ हैं।

अप्रैल के फैसले के समय देश के कई गैर-भाजपा शासित राज्यों—

• तमिलनाडु

• केरल

• बंगाल

—में राज्यपाल और सरकार के बीच तनाव चरम पर था।

तमिलनाडु में NEET छूटभाषा नीति, और चुनावी परिसीमन को लेकर सत्ता और केंद्र के बीच कई टकराव चल रहे थे।

तमिलनाडु सरकार 2023 से इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रही है और 15 नवंबर को उसने एक और याचिका दायर की है।

Supreme Court Governor Delay: शिक्षा नीति पर केंद्र बनाम राज्य का बड़ा टकराव

शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची में आती है, और इससे जुड़े फैसलों पर अक्सर राज्य और केंद्र के बीच मतभेद रहे हैं।

तमिलनाडु सरकार—

• तीन भाषा सूत्र,

• चुनाव क्षेत्र परिसीमन,

• और विशेष रूप से NEET से छूट

को लेकर केंद्र के खिलाफ लगातार मोर्चा खोल रही है।

इन मुद्दों पर राजनीतिक बहस तो खूब हुई, लेकिन मूल समस्याओं का हल अभी तक नहीं निकला है।

Supreme Court Governor Delay: अप्रैल का बड़ा फैसला और उसकी संवैधानिक चुनौती

अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने पहली बार राजभवनों के लिए—

• लंबित विधेयकों पर समयबद्ध कार्रवाई की अनिवार्यता तय की थी।

• राष्ट्रपति को भी समय-सीमा में निर्णय का निर्देश दिया गया था।

इस फैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सवाल उठाए और मई में सुप्रीम कोर्ट को 14 बड़े प्रश्न भेजे। मुख्य मुद्दा यह था कि—

क्या अदालत ने शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन किया है?

अब शीर्ष अदालत ने यह माना है कि—

• न्यायपालिका विधायी प्रक्रिया में दखल देकर मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचा सकती।

• न्यायिक समीक्षा का दायरा अनियंत्रित नहीं हो सकता।

दूसरी ओर, यह भी स्पष्ट किया कि—

राज्यपालों की ‘निष्क्रियता’ का परिणाम अनंतकालीन देरी के रूप में लोकतंत्र को प्रभावित नहीं कर सकता।

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Supreme Court Governor Delay: राज्यपालों और सरकारों के बीच हालिया टकराव

हाल के वर्षों में कई राज्यों में विवाद बढ़े हैं—

• कुलपतियों की नियुक्ति

• विधान परिषद में नामांकन

• सदन का सत्र बुलाने को लेकर विवाद

• और विधेयकों को रोके रखना

तमिलनाडु, केरल और बंगाल में यह मुद्दा कई बार उभरा है।

2023 में पंजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि—

राज्यपाल पर समयबद्ध निर्णय लेना अनिवार्य है।

अप्रैल के फैसले ने इसी सिद्धांत को अधिक स्पष्ट किया था।

Supreme Court Governor Delay: NEET से छूट बिल पर फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तमिलनाडु

15 नवंबर को तमिलनाडु सरकार ने फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

राज्य में—

• 2017 से NEET छूट के लिए लड़ाई जारी है।

• 2021 में विधानसभा ने बिल पास किया।

• जस्टिस AK रंजन कमेटी की सिफारिशों पर आधारित यह बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना अटका हुआ है।

तमिलनाडु के लिए NEET का मुद्दा सिर्फ शिक्षा से नहीं, दशकों पुरानी राजनीतिक और सामाजिक बहस से जुड़ा है।

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखने का प्रयास है। उसने समय-सीमा हटाकर शक्तियों के पृथक्करण का सम्मान किया, लेकिन साथ ही राज्यों को न्याय की राह खुली रखी।

राज्यपालों की भूमिका, केंद्र-राज्य संबंध, और NEET जैसे मुद्दे आने वाले समय में भी राजनीतिक और संवैधानिक विमर्श के केंद्र में रहेंगे।

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