महेश खरे (वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभ लेखक)
लगता है अब पीओके की बारी है। पीओके यानि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर। भारत तो इसे अपने परिवार का हिस्सा मानता ही है…यह भारत के मन की ही नहीं, पीओके में तेज होती जा रही ‘सच्ची आजादी’ की धुन की भी बात है। ये ‘आग’ है दोनों ओर बराबर लगी हुई। भारतीय नेताओं के विचार पीओके के आजादी पसंद आवाम का उत्साह बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आज जो हालात हैं उन्हें जान सुनकर यह कहा जा सकता है कि पीओके की जनता भारत में मिलने को तैयार ही नहीं, बेचैन और उतावली है। इसीलिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान पर भारतीय ही नहीं पीओके के लोगों को भरोसा हो रहा है। रक्षामंत्री ने कहा है कि पीओके भारतीय परिवार का हिस्सा है। वह दिन दूर नहीं जब वहां के लोग अंतरात्मा की आवाज सुनकर खुद भारत की मुख्यधारा में लौट आएंगे। इसलिए अब पाकिस्तान के साथ बातचीत सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद और पीओके पर ही होगी। यह सच भी है। 54 लाख की आबादी वाले पीओके के अधिकांश लोग वैचारिक दृष्टि से स्वयं को भारत की कश्मीर घाटी के करीब पाते हैं। वल्कि वे भारत के अंग हैं।
दूसरी ओर पीओके में बंदूक के जोर पर लोगों की भावनाओं का दमन हो रहा है। यही नहीं पाकिस्तान की चीन परस्त नीति के कारण पीओके में चीनी दखल बढ़ता जा रहा है। गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके में आकार पाते जा रहे आर्थिक गलियारे के बहाने इस इलाके में चीनी दखल बढ़ता जा रहा है। इस आर्थिक गलियारे का एक सिरा ग्वादर पोर्ट तक जोड़ने का इरादा है। चीन की मदद का इतना अधिक आकर्षण है कि भारत के कश्मीर पर विवादित बयान दे रहे पाकिस्तान के नेता इस ओर से आंखें मूंदे हुए हैं। हालांकि इस गलियारे का ज्यादातर लाभ चीन को ही होगा। शायद पाकिस्तान की यह मजबूरी भी है।
पीओके को पाकिस्तान की हुकूमत ‘आजाद कश्मीर’ कहती है। दिखाने को पीओके में प्रधानमंत्री का पद भी बना दिया गया है। लेकिन यहां हुकूमत इस्लामाबाद से ही चलती है।
आजाद कश्मीर दर असल जम्मू का ही हिस्सा है। भारत इसको ‘गुलाम कश्मीर’ कहता और मानता भी रहा है। यही सच्चाई है। शायद इसी कारण पीओके में सच्ची आजादी के झौंके चल रहे हैं। पाकिस्तानी सेना इनके आगे विवश सी दिखाई देती है। मीडिया रिपोर्टों पर भरोसा करें तो पीओके की सीमा में पाकिस्तानी सैनिक घुसने से भी घबराते हैं। सैनिक गाड़ियों पर पथराव वहां आम बात है। एक्टिविस्ट संगठित और ताकतवर होते जा रहे हैं। यदा- कदा सोशल मीडिया पर वायरल ऐसे वीडियो पीओके में फौज की फजीहत का प्रमाण देते रहते हैं। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सहायता के लिए विदेश में भटक रहे तो पीओके के एक्टिविस्ट भी विदेशी दौरों की योजना बना रहे हैं। ये नेता पीओके की जनता की भावना विदेशों में बताएंगे।
भारत में आज बात उसी पीओके के भू-भाग की हो रही है जो 1948 में पाकिस्तान के पास चला गया था। भारत का स्पष्ट कहना है कि पूरा कश्मीर हमारा है। 1962 के युद्ध के बाद उत्तर पूर्व में चीन से सटे अक्साई चिन पर चीन का कब्जा है। इसे मान्यता देने में पाकिस्तान ने देर नहीं लगाई थी। गिलगित-बाल्टिस्तान की तो पाकिस्तान ने डेमोग्राफी ही बदल डाली हैं। कश्मीरियों को वहां से खदेड़ दिया है। कश्मीरी शिया बहुल यहां की आबादी अब अल्पसंख्यक हो गई है।
आठ जिलों वाले पीओके को पाकिस्तान ने दो प्रशासनिक क्षेत्रों में बांटा है- पीओके (आजाद कश्मीर) और दूसरा गिलगित- बाल्टिस्तान। आजाद कश्मीर का आकार लंबाई में करीब 400 किलो मीटर और चौड़ाई में लगभग 16 से 64 किलोमीटर है।
इसमें मुजफ्फराबाद, पुंछ और मीरपुर डिवीजन आते हैं। नीलम, झेलम और पुंछ नदियों वाले पीओके में ग्रेफाइट, मार्बल, लिमोनाइट, लाइमस्टोन, जिप्सम, क्वाट्ज आदि के भंडार हैं। चीन और अमेरिका की नजर इन्हीं भंडारों पर रहती है। यहां की खूबसूरत घाटियां जम्मू कश्मीर की तरह हैं। इनमें नीलम घाटी बेहद खूबसूरत है। 52 शक्तिपीठों में से एक शारदा पीठ भी यहीं है।
1947 में आपाधापी के बीच असंगत विभाजन ने कश्मीर विवाद के जो बीज बोए, वही बीज अब पनपते जा रहे हैं। भारत की उदारता के बावजूद पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैए के कारण ही कई-कई युद्धों की नौबत आई। आज भी भुखमरी के कगार पर खड़ी पाकिस्तानी हुकूमत आतंक के साए में ही जीने को विवश हैं। सरकार फौज और आतंकियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि यह पता ही नहीं चलता कि सरकार आतंक की गोद में है या आतंकी सरकार की गोद में पनाह लिए हुए हैं। ऑपरेशन सिंदूर में आतंकी ठिकानों को भारतीय सेना ने बर्बाद किया उसके बाद भी लश्कर, जैश और हिज्बुल के खूंखार आतंकी फिर एकजुट होने की कोशिश में जुट गए हैं। सार्वजनिक जमघट में लश्कर के आतंकी जहां भारत के खिलाफ जहर उगल रहे हैं वहीं सरकार के मंत्री और आतंकियों के साथ मंच साझा कर रहे हैं और गले मिल रहे हैं।
पीओके, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनवा में विद्रोह को दबाने के लिए पाकिस्तानी फौज का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है। छह लाख सैनिकों वाली फौज का एक चौथाई हिस्सा तो इन्हीं इलाकों में तैनात हैं। पाकिस्तान को यह बात कब समझ में आएगी कि सत्ता के लिए फौज से ज्यादा वहां आवाम का भरोसा जीतना जरूरी होता है। पीओके, बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनवा और सिंध में तो जनता हुकूमत के खिलाफ खुलकर खड़ी हो गई है। आने वाले समय में पाकिस्तान का टुकड़ों में बिखरना तय माना जा रहा है। इसका समय भी वहां की जनता ही तय करेगी।
‘गुलाम कश्मीर’ में सच्ची आजादी की हवा
