उद्देश्य से भटकता संयुक्त राष्ट्र संघ

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अशोक मधुप ( वरिष्ठ पत्रकार )
संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ ) का मुख्य औचित्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, मानव अधिकारों की रक्षा करना, और विभिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना है। इसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945 में 51 देशों द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य था कि भावी युद्धों को रोका वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके। आज 193 देश इसके सदस्य हैं। इतने बड़े संगठन का लगता है कि आज कोई देश कहना मानने को तैयार नहीं। सबकी अपनी ढपली अपना राग है। संयुक्त राष्ट्र संघ तमाशबीन बन कर रह गया है। लगभग एक साल आठ माह से इजरायल−हमास युद्ध चल रहा है। अब इजरायल से ईरान पर हमलाकर दिया है। इजरायल−ईरान युद्ध में बैलिस्टिक मिजाइल प्रयोग हो रही हैं। सवा दो साल से रूस−यूक्रेन युद्ध चल रहा है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में की गई बरबादी पूरी दुनिया ने देखी। संयुक्त राष्ट्र संघ मानव जीवन की बरबादी देख रहा है। यह असहाय बना बैठा है। मानव जीवन का विनाश रोकने के लिए वह कुछ नहीं कर पा रहा। उसकी भूमिका शून्य होकर रह गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नहीं कर सकता। को देश उसकी मानने को तैयार नही।युद्ध रोकने की उसकी शक्ति नहीं तो उसका औचित्य क्या है? दुनिया के देश क्यों इस सफैद हाथी को पाले हैं। क्यों इसका खर्च वहन कर रह हैं। इस भंग क्यों नही कर दिया जाता।
एक साल आठ माह से से हमास-इजरायल युद्ध चल रहा है। लगभग डेढ़ साल पूर्व हमास-इजरायल युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रयास हुए। कई बार प्रस्ताव के प्रयास हुए पर वीटो पावर वाले देशों के अडंगे के कारण कुछ नहीं हो सका। बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस युद्ध को रोकने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव स्वीकार किया, किंतु इजरायल ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। होना यह चाहिए था कि प्रस्ताव होता कि हमास ने इस्राइल पर हमला किया है, वह इजरायल के नुकसान की भारपाई करे। इजरायल के बंदी रिहा करे। ये भी व्यवस्था होती कि भविष्य में हमास ऐसा दुस्साहस न कर सके। सब चाहते हैं कि इस्राइल युद्ध रोके। कोई ये पहल नही कर रहा कि पहले हमास इजरायल के बंदी रिहा करे। इजरायल के हमलों में बच्चों और महिलाओं के मरने की बात हो रही है। मुख्य मामला पीछे चला गया। अब ये सब बात बंद हो गई। साफ हो गया कि इजरायल मानने वाला नही है। हमास के हमले में इजरायल में बच्चों-महिलाओं का जिस तरह कत्ल किया गया, उनकी गर्दन काटी गई। उसका कहीं जिक्र नहीं हो रहा। इस तरह का दोहरा आचरण दुनिया का विखंडित ही करेगा, रोकेगा नही। पिछले तीन साल चार माह से रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है। इस युद्ध में मरने और घायल होने वाले दोनों देशों के सैनिकों की संख्या पांच लाख के आसपास है। अपने सैनिकों की मौत के बारे में न रूस कुछ बता रहा है, न ही यूक्रेन।
संयुक्त राष्ट्र इस युद्ध को नहीं रोक पा रहा है। इस युद्ध से दोनों देशों का विकास तो रुका ही। मानव कल्याण के लिए भवन, पुल, स्कूल और उद्योग खंडहर बन गए। इनके युद्ध के कारण दुनिया के अन्य देशों को होने वाली अनाज की आपूर्ति रुकी है। इससे पूरी दुनिया में मंहगाई बढ़ रही है। हाल ही में यूक्रेन ने रूस पर बड़ा हमला किया। इससे रूस को भारी क्षति हुई। कई आधुनिक लड़ाकू विमान तबाह हुए। उसका जबाव रूस ने भी दिया। जिस तरह से रूस लड रहा है। मित्र देश यूक्रेन को पीछे से मदद कर रहे है, उससे लगता है कि गुस्साकर कभी भी रूस परमाणु हमला कर सकता है। किंतु इसकी किसी को चिंता नहीं। हमास-इजरायल युद्ध के बीच हुती विद्रोहियों ने इजरायल पर मिसाइल से हमले किए। इजरायल समर्थक देशों के मालवाहक जहाजों पर मिसाइल दागीं। इस सब के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ की नींद नही खुली।
आज संयुक्त राष्ट्र महासभा कुछ देश के हाथों की कठपुतली बन गया है। अन्य देश न अपनी ताकत का प्रयोग कर सकता है ना अपनी क्षमता का। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज के हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में वह सक्षम नहीं है। पांच वीटो पावर देश उसे अपनी मर्जी से नचा रहे हैं। उनके एकजुट हुए बिना संयुक्त राष्ट्र महासभा कुछ नहीं कर सकता। ये पांचों विटो पावर देश खुद खेमों में बंटे है। ऐसे में सर्व सम्मत प्रस्ताव पास होना एक प्रकार से नामुमकिन हो गया है। म्यांमार में पिछले दिनों सेना का जुल्म देखने को मिला। चीन में उइगर मुसलमानों पर जुल्म जग जाहिर हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। पुलबामा कांड के बाद भारत ने पाकिस्तान में आंतकी ठिकानों पर मिसाइल से हमले किए। पाकिस्तान के जवाब में चार दिन युद्ध चल कर रूका। संयुक्त राष्ट्र संघ इसे रोकने के लिए भी कुछ नहीं कर सका। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की बरबादी दुनिया ने देखी। पूरा विश्व सब देखता रहा। कोई कुछ नहीं कर सका। आज आतंकवाद पूरे विश्व की बड़ी समस्या है। सब जानते हैं कि कौन देश इसे पाल पोस रहे हैं। इस आंतकवाद के खात्मे के लिए कोई संयुक्त प्रयास नही हो रहे। कभी इस बारे में प्रस्ताव आता है तो पांच विटो पावर दादाओं में से कोई न कोई उस प्रस्ताव को विटो कर देता है। जिस तरह से इजरायल हमास और ईराक में संघर्ष चल रहा है। अमेरिका इजरायल के पीछे खड़ा है। यूक्रेन के पीछे मित्र राष्ट्र हैं। ऐसे में कभी भी दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध का सामना करना पड सकता है।
आज जरूरत आ गई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की उपयोगिता पर विचार किया जाए। इसे उपयोगी बनाने पर कार्य किया जाए। ऐसा ढांचा खड़ा किया जाए कि एक देश दूसरे देश का मददगार बने। मुसीबत में उसके साथ खड़े हो, उसकी रक्षा कर सकें। ऐसा नहीं आपदा के समय सिर्फ तमाशा देखें। सब दुनिया के सभी देश बराबर हैं तो पूरी दुनिया के पांच देशों को ही वीटो पावर का अधिकार क्यों? उनकी ही पूरी दुनिया पर दादागिरी क्यों? इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र संघ में डिक्टेटरशिप लागू नहीं है जो किसी विशेष का निर्णय फाइनल होगा। किसी निर्णय को रोक सकेगा। आज के हालात में सामूहिकता बढ़ाने, सामूहिक निर्णय पर चलने, सामूहिक विकास का सोचने की सबसे बडी जरूरत है। और एक ऐसे संगठन की दुनिया को जरूरत है जो निष्पक्ष और तटस्थ होकर पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए काम कर सके। ऐसे संगठन की जरूरत नहीं है जिसमें चार या पांच दादाओं का ही निर्णय चले। पूरी दुनिया निरीह बनी लूटी−पिटी मौन खड़ी रहे।

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