लाइव बिहार: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए मतगणना जारी है। अभी तक के आए रुझान एग्जिट पोल से बिल्कुल विपरीत हैं। तमाम एग्जिट पोल में महागठबंधन को या तो पूर्ण बहुमत या एनडीए पर बढ़त के साथ दिखाया गया था, लेकिन रुझान कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। अब चर्चा हो रही है कि आखिर ऐसा क्या होता है कि बिहार में एग्जिट पोल फेल कर जाते हैं। 2015 के चुनाव के समय भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला था। उस वक्त सभी एग्जिट पोल में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को बढ़त मिल रही थी लेकिन नतीजे उसके ठीक उलट आए।
रुझानों के बीच इस बात की चर्चा गर्म है कि एग्जिट पोल में ऐसी कमी क्या रह जाती है, जो वह बिहार के मूड को पकड़ पाने में असफल हो जाता है। इसके लिए एक तर्क दिया जाता है और उसके लिए खास शब्द का इस्तेमाल होता है। वह शब्द है, ‘चुप्पा वोटर्स।’ इस शब्द से आपको इसका मतलब भी पता चल रहा होगा। चुप्पा वोटर्स का मतलब, वो मतदाता जो चुपचाप अपना वोट डाल आते हैं और मुखर नहीं रहते।
एग्जिट पोल के अनुमान के विपरीत नतीजे ये बताने के लिए काफी हैं कि इस बार चुप्पा वोटर्स ने आरजेडी, कांग्रेस और वाम दलों के महागठबंधन की बजाय बीजेपी, जेडीयू, हम और वीआईपी के एनडीए को अपना मत दिया है। 2015 के चुनाव में कहा गया था कि बिहार के चुप्पा वोटर्स ने आरजेडी और जेडीयू के गठबंधन के पक्ष में मतदान किया था।
आखिर कौन हैं ‘चुप्पा वोटर्स’
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये चुप्पा वोटर्स हैं कौन? दरअसल, चुप्पा वोटर्स उनको कहा जाता है जो ज्यादा मुखर नहीं होते पर मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। महिलाओं और अति पिछड़ा वर्ग को चुप्पा वोटर्स माना जाता है। वहीं कुछ अन्य इलाकों में जातीय गणित से उलट कुछ ऐसे मतदाता हैं जो सार्वजनिक तौर पर अपनी पसंद जाहिर नहीं करते लेकिन मतदान जरूर करते हैं।
अभी तक के आए रुझान बदल भी सकते हैं
अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक, एनडीए 125, महागठबंधन 107, एलजेपी 3 और अन्य 8 सीटों पर आगे चल रहे हैं। लेकिन इसमें बदलाव की प्रबल संभावना है क्योंकि 47 सीटों पर 100 वोटों से कम का अंतर है। वहीं 25 सीटों पर 500 से कम का अंतर है। इसके अलावा 29 सीटें ऐसी हैं, जहां पर 500-100 वोटों का अंतर है। बिहार में 122 जादुई आंकड़ा है।