देश में अल्पसंख्यकों के विकास के बजाए भावनात्मक मुद्दों पर बरगला कर उनके दोहन का खेल जारी है। राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों को वोट बैंक की फसल से ज्यादा कुछ नहीं समझते। अल्पसंख्यकों का अधिक हितेषी साबित करने के लिए गैर भाजपा राजनीतिक दलों में कभी खत्म नहीं होने वाली चुनावी प्रतिस्पर्धा जारी है। इसका मंच चाहे चुनावी सभाएं हो या संसद के दोनों सदन। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी का अल्पसंख्यक वोट बैंक को रिझाने के प्रयास में भाजपा पर देशभक्त अल्पसंख्यकों के खिलाफ भी हिंसा फैलाने का आरोप लगाया। राहुल ने भाजपा का नाम लिए बगैर कहा कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ, मुसलमानों के खिलाफ और सिख लोगों के खिलाफ हिंसा और नफरत फैलाते हैं। जबकि अल्पसंख्यक हर क्षेत्र में अपना योगदान देते हैं। अल्पसंख्यक देश के साथ पत्थर की तरह खड़े हैं, देशभक्त हैं और आप सबके खिलाफ हिंसा और नफरत फैलाते हैं। राहुल गांधी ने कहा कि अल्पसंख्यकों ने देश के साथ-साथ संविधान की भी रक्षा की है। राहुल गांधी का यह बयान महज एक चुनावी बयान से अधिक कुछ नहीं है। यह पहला मौका नहीं है जब अल्पसंख्यकों के वोट बैंक के लिए संसद के मंच का इस्तेमाल किया गया हो। चुनावी सभाएं हों या संसद, मौके-बेमौकों पर अल्पसंख्यक की हिमायत करने का कांग्रेस और दूसरे गैर भाजपा दल कोई मौका नहीं छोड़ते। अल्पसंख्यकों की पैरवी करने वाली कांग्रेस और राहुल गांधी ने यह खुलासा कभी नहीं किया कि आजादी के करीब 60 साल तक कांग्रेस का शासन केंद्र और ज्यादातर राज्यों में रहने के बावजूद अल्पसंख्यक बुनियादी सुविधाओं और देश की विकास की मुख्यधारा से दूर क्यों हैं।
अल्पसंख्यकों को लेकर हायतौबा मचाने वाली कांग्रेस ने कांग्रेसशासित राज्यों में उनकी भलाई के लिए कौन से प्रयास किए। इसके अलावा केंद्र और भाजपा शासित राज्यों में सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों से कौनसा भेदभाव किया गया है। इसका भी खुलासा कभी कांग्रेस ने नहीं किया है। यह सही है कि भाजपा ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों को पार्टी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया, किन्तु यह भाजपा का आंतरिक मामला है। सरकारी स्तर पर भाजपा के मुसलमानों से भेदभाव का एक भी उदाहरण मौजूद नहीं है। जो योजनाएं देश या राज्यों के स्तर पर भाजपा सरकारों ने लागू कि उनमें सभी को पात्रता के आधार पर सुविधाएं दी गई हैं। जाति, धर्म या समुदाय के आधार पर कोई अंतर नहीं रखा गया। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अनुसार साल 2014 से देश में पारसी, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई और मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले लगभग 5 करोड़ से ज्यादा छात्रों को छात्रवृत्ति दी गई।
सरकार का कहना है कि ऐसा करने से खासकर मुस्लिम लड़कियों के स्कूल छोडऩे की संख्या कम हुई है। 2014 से पहले मुस्लिम लड़कियों में स्कूल छोडऩे की संख्या 70 प्रतिशत थी जो अब घटकर 30 प्रतिशत से भी कम हो गई है। केंद्र सरकार द्वारा सीखो और कमाओ योजना शुरु की गई। इसी योजना के तहत इस साल यानी 2022 में लगभग 8 लाख महिला को लाभ पहुंचा है। वर्ष 2021-22 में देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में मुसलमानों का कुल नामांकन 21.1 लाख रहा, जबकि 2020-21 में यह आंकड़ा 19.22 लाख और 2014-15 में 15.34 लाख था, यानी 7 वर्षों में 37.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई लेकिन कोरोना के दौरान इसमें बड़ी गिरावट आई थी। सवाल यह है कि देश में ज्यादातर वक्त राज करने के बावजूद कांग्रेस शासित राज्यों में मुसलमानों की साक्षरता दर सौ प्रतिशत क्यों नहीं हो पाई। निजी और सरकारी क्षेत्र में रोजगार विकसित करने के लिए कांग्रेस का आंकड़ा सर्वोच्च क्यों नहीं रहा।
अल्पसंख्यकों की असुरक्षा को लेकर भी कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दल उन्हें भयभीत करने का काम करते रहें हैं, ताकि उनके वोट पर अधिक हिस्सा बटोरा जा सके। भारत में 300,000 से अधिक सक्रिय मस्जिदें हैं, जो अधिकांश इस्लामिक देशों से अधिक है। जनसंख्या के मामले में भारत तीसरा सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश है। देश के किसी भी भाजपाशासित राज्य में एक भी मस्जिद को नहीं तोड़ा गया सिवाए बाबरी मस्जिद के, जिसका फैसला भी कानून के दायरे में हुआ। मथुरा में ईदगाह कृष्ण जन्मभूमि विवाद और वाराणासी में ज्ञानव्यापी विवाद अदालत में विचाराधीन है। जबकि पिछले दस वर्षों से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है। इसके बावजूद किसी भी मस्जिद को नुकसान नहीं पहुंचाया गया।
मुसलमानों को देशभक्त बताने वाले राहुल गांधी और कांग्रेस ने इस पर भी कभी प्रतिक्रिया नहीं दी कि केंद्र में मोदी सरकार सरकार आने के बाद देश में आतंकियों द्वारा किए जाने वाले बम धमाके कैसे रुक गए। इन बम धमाकों के आरोपियों के लगभग सभी नाम मुस्लिम समुदाय से ही क्यों आए। इसके अलावा देश में होने वाले सांप्रदायिक दंगों पर लगाम कैसे लग गई। दस साल पहले तक उत्तर प्रदेश इन दंगों के लिए बदनाम था। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान होने वाले सांप्रदायिक दंगे योगी सरकार के आने के बाद कैसे रुक गए। सच्चाई यही है कि कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को डर दिखा कर उन्हें पिछड़ा बनाए रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। जागरुकता के इस दौर में मुसलमान भी इस सच्चाई को काफी हद तक समझ गए हैं। भाजपा को चाहिए मुसलमानों को भी पर्याप्त राजनीतिक भागीदारी दे ताकि दूसरे दलों की अल्पसंख्यकों के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीति पर अंकुश लगाया जा सके।