Desk: कैमूर का मुंडेश्वरी मंदिर देश का सबसे पुराना जीवित मंदिर है। प्रामाणिक साक्ष्यों से श्रीयंत्र आकार का अष्टकोणीय मंदिर 1913 साल पुराना है। तब से जारी पूजा-प्रसाद की परंपरा आजतक कायम है। परिसर से एक ही शिलालेख के दो टुकड़े मिले हैं।
दोनों कोलकाता म्यूजियम में हैं। इसमें लिखा है कि राजा उदयसेन के काल में दंडनायक गोमिभट्ट ने 3 फीट 9 इंच ऊंचे चतुर्मुखी शिवलिंग की पूजा के लिए 500 सोने के दिनार दिए थे। कहा था कि जब तक सूरज-चांद है, शिवलिंग पर दीप जलाने व प्रसाद का प्रबंध होता रहेगा।
यहां भगवान शिव पूरे परिवार के साथ विराजते हैं
गोमिभट्ट के शिलालेख की काल गणना के आधार पर आचार्य किशोर कुणाल कहते हैं मुंडेश्वरी मंदिर 108वीं सदी यानी कुषाणकाल का है। कुषाणकाल के बाद मुखलिंग पर तीसरा नेत्र जरूरी मान लिया गया। मुंडेश्वरी शिवलिंग के एक मुख के मस्तक पर रुद्राक्ष की माला है। मुखों की आकृति भिन्न है। स्त्रीमुख नहीं है। त्रिनेत्र तो है ही नहीं। यह सब गुप्त काल में शुरू हुआ। इससे पहले इतिहासकार, मंदिर को गुप्तकालीन तो कुछ हर्षकालीन बताते रहे हैं।
मुंडेश्वरी की मूर्तियां लाल पत्थर, बलुआ पत्थर और काले पत्थर की बनी हुई हैं। चतुर्मुखी शिवलिंग भी इसी पत्थर से बना है। मूर्तियां मथुरा शैली में बनी हैं। मंदिर के मूल नायक चतुर्मुखी शिवलिंग हैं। मान्यता है कि पहर के हिसाब से शिवलिंग का रंग बदलता है।
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मंदिर परिसर में मिलीं सभी प्रतिमाएं शिव परिवार की
यह मंदिर ऋषि अत्रि की तपोभूमि रही त्र्यक्षकुल पर्वत पर है। त्र्यक्षकुल का अर्थ शिव और शिवा के समस्त कुल का प्रिय धाम है। मंदिर परिसर में प्राप्त प्राय: सभी प्रतिमाएं शिव परिवार की ही हैं। जैसे, भवानी दुर्गा, नंदी, गणेश, कार्तिकेय, हरिहर, उमामहेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, लकुलीश, सूर्य, अग्नि, सप्तमात्रिका, गंगा, यमुना आदि। (मुंडेश्वरी मंदिर, पृष्ठ 175 महावीर मंदिर प्रकाशन)