पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर जारी खींचतान के बीच केंद्रीय नेताओं और स्थानीय सियासतकारों की नजरें अब मुकेश सहनी की ओर हैं। मुकेश सहनी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई है, जिसमें 8 सीटों को लेकर सहनी अड़े हुए हैं।
सहनी की प्रेस कॉन्फ्रेंस पहले 12 बजे बुलाई गई थी, लेकिन बाद में इसका समय बढ़ाकर शाम 4 बजे कर दिया गया। पटना के होटल मौर्या में प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए पहुंचे समर्थकों के बीच मारपीट भी हुई। मारपीट का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।
सूत्रों के अनुसार, प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले दिल्ली से राहुल गांधी ने सहनी से बात की और इसके बाद समय बदलने का निर्णय लिया गया। सहनी महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर खुश नहीं हैं।
सहनी और तेजस्वी का टू-टूक
सूत्रों के मुताबिक, RJD नेता तेजस्वी यादव ने मुकेश सहनी से कहा कि अगर वे महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो उनकी शर्तों को मानना होगा।
इसके बाद सहनी ने अपने फेसबुक अकाउंट से महागठबंधन का कोई जिक्र नहीं करते हुए पोस्ट साझा की। इसमें उन्होंने 14 नवंबर को महागठबंधन सरकार आने का दावा किया। इसके अलावा सहनी ने तीन दिन पहले भी इसी तरह का पोस्ट किया था।

सहनी और इंडियन इंक्लूसिव पार्टी के प्रमुख IP गुप्ता की मुलाकात भी चर्चा में है। IP गुप्ता ने X (पूर्व Twitter) पर वीडियो साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा:
“पहली मुलाकात है, मिला मजबूत साथ है। शाम भी खास है, वक्त भी खास है, मुझको एहसास है। इससे ज्यादा हमें और क्या चाहिए, मैं तेरे पास हूं, तू मेरे पास है।”
हालांकि चार घंटे बाद सहनी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से बयान जारी कर कहा कि “महागठबंधन अटूट है। हम महागठबंधन के साथ हैं।”
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तेजस्वी और IP गुप्ता के दो मायने
सियासी विश्लेषक इस घटना से दो महत्वपूर्ण संकेत निकाल रहे हैं:
1. अगर मुकेश सहनी महागठबंधन छोड़ते हैं, तो IP गुप्ता को EBC समुदाय का चेहरा बनाकर महागठबंधन में आगे बढ़ाया जा सकता है।
2. IP गुप्ता के नाम पर मुकेश सहनी को संदेश दिया गया है।
मुकेश सहनी की ताकत और वोट बैंक

2014 से 2024 तक के 10 सालों में मुकेश सहनी ने बिहार में निषाद समुदाय के नेता के रूप में अपनी पैठ बनाई है। बिहार में इस समुदाय की आबादी लगभग 2.5% है।
सीनियर जर्नलिस्ट अरुण पांडेय के अनुसार, “मुकेश सहनी भले ही सीट न जीतें, लेकिन मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र की 25 से 30 सीटों पर हार-जीत का बड़ा फैक्टर हैं।”
सहनी लगातार चुनाव हार रहे हैं, लेकिन उनकी जाति में लोकप्रियता उतनी ही है, जितनी कुशवाहा समुदाय में RLSP के नेता उपेंद्र कुशवाहा की है।
सहनी के अलग होने का गणित — नुकसान और फायदा
सियासी विश्लेषक मानते हैं कि अगर मुकेश सहनी महागठबंधन से अलग होते हैं:
1. महागठबंधन में टूट का संदेश: NDA इसे राजनीतिक फायदा उठा सकती है। यह वैसा ही झटका होगा जैसा लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार के INDIA गठबंधन छोड़ने से मिला था।
2. अति पिछड़ा वर्ग का NDA के साथ मजबूती: EBC-OBC समुदाय NDA का कोर वोट बैंक है। सहनी के आने से NDA का मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र का गढ़ मजबूत होगा।
3. तेजस्वी यादव के EBC समीकरण पर असर: 2005 के बाद से तेजस्वी यादव ने EBC वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश की थी। मुकेश सहनी का अलग होना तेजस्वी की रणनीति को चुनौती देगा।
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सहनी का चुनावी अनुभव
मुकेश सहनी ने पिछले कई चुनावों में NDA और महागठबंधन दोनों के साथ चुनाव लड़ा है:
• 2014 लोकसभा चुनाव: NDA के लिए प्रचार।
• 2015 विधानसभा चुनाव: अपनी पार्टी बनाई और चुनाव लड़ा।
• 2019 लोकसभा चुनाव: महागठबंधन के साथ 4 सीटों पर चुनाव लड़ा, हार गए।
• 2020 विधानसभा चुनाव: NDA के साथ 11 सीटों पर कैंडिडेट उतारे, 4 जीत।
• 2024 लोकसभा चुनाव: महागठबंधन के साथ 3 सीटों पर चुनाव, खाता नहीं खुला।
इन चुनावों के अनुभव के आधार पर सहनी ने खुद को मिथिलांचल और कोसी के राजनीतिक समीकरण में निर्णायक माना है।
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