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Desk: बीते विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) के दौरान पूर्णिया की धमदाहा सीट (Dhamdha Assembly Seat) के लिए जनता दल यूनाइटेड (JDU) प्रत्‍याशी लेसी सिंह के लिए वोट मांगने गए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव (Last Election) है। अंत भला तजो सब भला। आप जान लीजिए कि नीतीश कुमार ने ऐसा पहली बार नहीं कहा था। अपने संघर्ष के दिनों में वे 1985 के विधान सभा चुनाव (Bihar Assembly Election 1985) को आखिरी मान कर चल रहे थे। लगातार हार के बाद इस बार उन्‍होंने साफ ऐलान कर चुके थे कि अगर जीते नहीं तो आगे चुनाव नहीं लड़ेंगे। इस ‘इमोशनल कार्ड’ (Emotional Card) ने कमाल कर दिया और नीतीश कुमार पहली बार विधानसभा पहुंच गए।

1985 में कहा था- नहीं जीते तो यह अंतिम चुनाव

मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार आज भारतीय राजनीति में स्‍थापित चेहरा हैं, लेकिन एक वह भी दौर था, जब वे लगातार हार से परेशान हो गए थे। साल 1977 व 1980 के विधानसभा चुनावों में हारे के बाद साल 1985 में वे लोकदल (Lok Dal) के टिकट पर हरनौत (Harnaut) से चुनाव मैदान में थे। मुकाबला कड़ा था और अगर नीतीश कुमार हार जाते तो यह उनकी पराजय की हैट्रिक होती। इस चुनाव पर उनका पूरा राजनीतिक भविष्‍य टिका था। इसी चुनाव के लिए प्रचार के दौरान अपने भाषण में कहा था कि वे आख़िरी बार वोट मांगरहे हैं। इस बार अगर लोगों ने वोट नहीं दिया तो वे आगे कभी कोई चुनाव नही लड़ेंगे।

भावना का उठा ज्‍वार, लग गई चुनावी नैया पार

हरनौत की उस जनसभा में रहे पटना के व्‍यवसायी संजय कुमार के अनुसार युवा नीतीश कुमार की बात से सन्नाटा पसर गया था। भावना का जो ज्‍वार उठा, उसने नीतीश कुमार की चुनावी नैया पार लगा यह भाषण उनके चुनावी भविष्‍य का टर्निंग प्‍वॉइंट बन गया और वे पहली बार विधायक (MLA) बने। नीतीश कुमार के समर्थक मनोज पटेल कहते हैं कि 1985 का चुनाव भविष्‍य के मुख्‍यमंत्री की मजबूत नींव बना गया। लोग भले ही उनके संबोधन को ‘इमोशनल कार्ड’ कहें, लेकिन यह उनका जनता के दिलों में उतर जाने वाला सीधा संवाद था। उनका यह हुनर दिनोदिन निखरता गया। साल 2020 के विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान धमदाहा में भी उन्‍होंने ‘आखिरी चुनाव’ वाली बात कह जनता के दिल तक सीधा रास्‍ता बनाया।

राजनीति या नौकरी के दोराहे पर खड़े थे नीतीश

अब बार पुराने दिनों की। नीतीश कुमार साल 1977 व 1980 के चुनावों में हार के बाद राजनीतिक व सामाजिक अस्तित्व के संकट के दौर से गुजर रहे थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Lok Nayak Jai Prakash Narayan) के सम्पूर्ण क्रांति (Sampoorna Kranti) आंदोलन में शामिल रहे नीतीश कुमार ने साल 1972 में इंजीनियरिंग करने के बाद बिजली विभाग में नौकरी भी की, लेकिन फिर राजनीति को चुन लिया। इसी दौर में पिता का निधन हो गया। नीतीश कुमार की शादी हो चुकी थी। घर में एक बच्‍चा भी आ चुका था। आर्थिक अस्थिरता व समाजिक अस्तित्‍व संकट के इस दौर में परिवार की आर्थिक जिम्‍मेदारी सामने खड़ी थी। राजनीति या नौकरी या व्‍यवसाय के दोराहे पर खड़े नीतीश कुमार ने आखिरी चुनाव लड़ने का फैसला किया।

1985 की जीत के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा

साल 1985 में नीतीश कुमार ने लोकदल के टिकट पर हरनौत से चुनाव लड़ा और जीत गए। इसके बाद नीतीश कुमार ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आगे 1987 में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष तो 1989 में बिहार में जनता दल के सचिव बने। साल 1989 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के नेता प्रतिपक्ष बनने का समर्थन किया था। आगे 1996 में बाढ़ से पहला लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ हो लिए। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार में नीतीश कुमार भूतल परिवहन, कृषि व रेल मंत्री रहे। इसी बीच साल 2000 में वे पहली बार केवल सात दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री (CM) बने। नवंबर 2005 में नीतीश कुमार बिहार की राजनीति से 15 साल पुराने लालू-राबड़ी शासन को उखाड़ फेंकने में सफल रहे। से साल 2014 के छोटी अवधि को छोड़कर लगातार मुख्‍यमंत्री बने हुए हैं।

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