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Desk: बिहार के सरकारी तथा सरकार अनुदानित स्कूलों में करीब 40 लाख बच्चे कम हो गए हैं। यह कमी प्रारंभिक स्कूलों में नामांकित विद्यार्थियों की संख्या में आयी है। शिक्षा मंत्री विजय चौधरी ने मंगलवार को विधानसभा के प्रश्नोत्तर काल के दौरान इस बात को माना है। शिक्षा मंत्री ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सरकार की ओर से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि 8 मार्च से राज्य के सरकारी स्कूलों में प्रवेशोत्सव कार्यक्रम चलाया जाएगा, जिसके तहत बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया जाएगा।

बता दें कि कुछ दिनों पहले ही हिन्दुस्तान ने इस खबर को प्रमुख से छापा था, जिसके अनुसार 40 लाख बच्चे 2014-15 की तुलना में 2018-19 में कम हुए हैं। वर्ष 2014 में 2 करोड़ 6 लाख 49 हजार 462 विद्यार्थी राज्य के सरकारी व अनुदानित स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक में नामांकित थे, जबकि 2018 में यह संख्या 1 करोड़ 66 लाख 84,400 हो गयी। बिहार के स्कूल शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यू डायस) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। इसकी जानकारी बिहार और केन्द्र के शिक्षा महकमे को भी है।

गौरतलब है कि प्रारंभिक स्कूलों में पढ़ने वाले 6 से 14 साल की आयु के बच्चों के लिए बिहार समेत देशभर में बच्चों की अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा कानून (आरटीई) लागू है। इसके तहत सरकारी स्कूलों में इस आयु वर्ग के बच्चों को न तो कोई फीस लगती है, न ही कोई और खर्च होता है। किताब, पोशाक से लेकर मध्याह्न भोजन तक मुफ्त में दी जाती है। इतनी सारी योजनाओं के संचालित होने के बावजूद बच्चों के नामांकन में इतनी बड़ी कमी चिंतित करने वाली है। तसल्ली यह है कि रिपोर्ट बता रही कि इस दौरान निजी स्कूलों में बच्चे बढे़ हैं।

पांच साल में कुल नामांकन 26.5 लाख घटा
यू-डायस की रिपोर्ट के मुताबिक 2014-15 में सरकारी तथा निजी स्कूलों को मिलाकर प्रारंभिक में 2,21,33,004 बच्चे नामांकित थे। अगले पांच साल में कुल नामांकन में करीब 26.5 लाख की कमी आ गयी है। शैक्षिक सत्र 2018-19 में कक्षा एक से आठ में कुल नामांकित विद्यार्थियों की संख्या 1 करोड़ 94 लाख 86567 ही है।

राज्य के निजी स्कूलों में हर वर्ष बढ़ रहे बच्चे
यू-डायस की पांच साल की रिपोर्ट बताती है कि जहां सरकारी स्कूलों में बच्चे कम हो रहे हैं, वहीं निजी स्कूलों में बच्चे साल-दर-साल बढ़ रहे हैं। 2014 में पहली से आठवीं में राज्य के कुल नामांकित विद्यार्थियों में जहां 93.30% सरकारी में थे तो महज 6.70% निजी स्कूलों में। 2018-19 में दोनों के प्रतिशत में करीब 8% का अंतर आया है। सरकारी स्कूलों में यह प्रतिशत घटकर 85.62 पर तो निजी में यह बढ़कर 14.38 पर पहुंच गया है।

कोरोना काल में स्कूल बंद होने से भी लाखों छात्र हुए कम
यू-डायस की कोरोना काल अर्थात 2020-21 की इंट्री अभी केन्द्र सरकार द्वारा शुरू नहीं हुई है और 2019-20 का ही सर्वे तथा आंकड़ों की इंट्री चल रही है। पर शिक्षा विभाग को भी आशंका है कि कोरोना काल में साढ़े 9 माह की स्कूलबंदी के कारण लाखों की संख्या में छात्र स्कूलों में कम हुए हैं। शिक्षा विभाग को अंतरिम रिपोर्ट भी जिलों से ऐसी ही मिली है, हालांकि सही आंकड़े यू-डायस इंट्री के बाद ही जारी होंगे।

क्यों कम हुए बच्चे

  • शिक्षा के प्रति सजगता है और निम्न मध्य वर्ग के लोग भी पैसा होने पर निजी स्कूलों में अपने बच्चे को भेजने लगे हैं
  • सरकारी स्कूलों का टाइम-टेबुल है। सुबह साढ़े 9 से शाम 4 बजे तक स्कूल चलता है। निजी स्कूल में दो बजे छुट्टी हो जाती है। उसके बाद निजी स्कूल के बच्चे अपने मां-बाप के ठेले-खोमचे समेत अन्य कारोबार में मददगार बन पाते हैं
  • 40 लाख बच्चों की संख्या कम होने का बड़ा कारण डुप्लीकेसी रुकना है। पहले सरकारी योजना के लिए बड़ी संख्या में बच्चे सरकारी व निजी दोनों जगह नामांकित थे, लेकिन अब डीबीटी से योजनाओं की राशि उन्हीं छात्रों को मिलती है जिनकी हाजिरी 75 फीसदी है। ऐसे में बड़ी संख्या में नाम कटाकर छात्र निजी स्कूलों में चले गए हैं।

सरकारी स्कूलों से बच्चों और उनके अभिभावकों का मोहभंग हुआ है। ये आंकड़े चेतावनी दे रहे हैं। दूसरी तरफ बेहतर भविष्य निर्माण को लेकर प्राइवेट स्कूल आश्वस्ति देने में कामयाब हो रहे हैं।
-डॉ. ज्ञानदेवमणि त्रिपाठी, शिक्षाविद्

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