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पटनाः बिहार में जाति आधारित गणना को लेकर सीएम नीतीश कुमार ने बड़ी मेहनत की थी, लेकिन मामला कोर्ट में पहुंचने के बाद से इसपर ग्रहण लगा हुआ है। जिसको लेकर राज्य सरकार की तरफ से कई तरह के सबूत कोर्ट में पेश करने के लिए तैयार है। पटना उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस विनोद के चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की बेंच में इस पर सुनवाई होगी। जहां बिहार सरकार जातीय गणना को लेकर अपने दलीलें पेश करेगी।

दरअसल, पटना हाईकोर्ट के तरफ से जाति आधारित गणना पर 4 मई को तत्काल प्रभाव से जातीय गणना पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा था कि अब तक जो डेटा कलेक्ट हुआ है, उसे नष्ट नहीं किया जाए। इस समय तक सरकार के तरफ से  80% से ज्यादा गणना का  काम पूरा हो चुका था। हाईकोर्ट की रोक के बाद इस मामले में सरकार के तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया था कि, यदि 3 जुलाई को पटना हाईकोर्ट सुनवाई नहीं करता है तो हम 14 जुलाई को इस मामले में सुनवाई करेंगे।

वहीं, जातीय गणना पर 4 मई को पटना हाईकोर्ट की रोक के बाद बिहार सरकार ने मामले में जल्द सुनवाई का आग्रह किया था। इस पर हाईकोर्ट ने 9 मई की तारीख तय की थी। 9 मई को सुनवाई के बाद कोर्ट ने तारीख बदलने से इनकार कर दिया था। इसके बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। जिसके बाद 18 मई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की बेंच में मामले की सुनवाई हुई। बेंच ने कहा कि इस बात की जांच करनी होगी कि क्या यह सर्वेक्षण की आड़ में जनगणना तो नहीं है।

बताते चलें कि, जातीय गणना का काम 80% पूरा कर लिया गया है, लेकिन उसे पूरी तरह से पूरा करने के लिए कुछ और समय की जरूरत है। बिहार में 7 जनवरी से शुरू हुई गणना 15 मई को खत्म होने वाली थी, लेकिन उससे पहले ही 4 मई को कोर्ट ने रोक लगा दी। कैबिनेट से पूरी गणना पर 500 करोड़ खर्च करने की बात कभी कही गई है।

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