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आश्विन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को कोजागरा पर्व लक्ष्मी पूजन के नाम से मनाया जाता है। इसको शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रदोषकाल में लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। इस दिन घर की पूरी तरह साफ-सफाई कर पूजन किया जाना चाहिए। सायंकाल में घर के द्वार पर हव्यवाहन, पूणेन्दु, सभार्यरूद्र, स्कन्द, नंदीश्वरमुनि, सुरभि, निकुंभ, लक्ष्मी, कुबेर, इंद्र का पूजन करें।

इस बारे में आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार इस पर्व को सबसे पहले भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद कोजगरा के रूप में मनाया गया था। तब से मिथिलांचल में इस पर्व को मनाने की परंपरा कायम है। वैसे कोजगरा शब्द का अर्थ होता है जागते रहो। उन्होंने कहा कि मान्यता है कि समुंद्र मंथन से निकली अमृत की वर्षा कोजागरा की रात ही हुई थी। इसलिए इस रात खुले आसमान के नीचे जागते रहने से आसमान से होने वाली अमृत की वर्षा शरीर पर पड़ती है, जिससे सभी रोगों का नाश होता है। एक अन्य कथा का जिक्र करते हुए आचार्य ने कहा कि द्वापर युग में आश्विन शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा अर्थात शरद पूर्णिमा को ही भगवान श्रीकृष्ण ने महारास करके समस्त प्राणियों को आध्यात्मिकता का संदेश दिया था। तभी से यह महोत्सव के रूप में मनाए जाने लगा।

मिथिलांचल में कोजागरा पर्व शुक्रवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। इसके लिए मिथिलांचल के नवविवाहितों के यहां व्यापक तैयारी की गई है। लड़की पक्ष के द्वारा वर पक्ष के यहां भेजे जाने वाली भोज सामग्री की भी व्यापक तैयारी की गई। ये सारे सामान कोजागरा के दिन लड़के के घर भेजा जाएगा। इस दिन मिथिला के प्रसिद्ध फल मखान की भी जमकर खरीदारी होती है। वैसे तो यह पर्व सभी घरों में मनाया जाता है, लेकिन मैथिल समाज में इस पर्व का उत्साह कुछ खास ही होता है। खासकर मैथिल नव विवाहित लड़का पक्ष द्वारा अपने घर व आसपास के क्षेत्र की साफ-सफाई कर आकर्षक ढ़ंग से सजाया जाता है। लड़की पक्ष की ओर से लड़का पक्ष के घर पान, मखान, मिठाई, वस्त्र आदि उपहार स्वरूप समाज के लोगों के स्वागत के लिए भेजा जाता है। धार्मिक आयोजन के बाद लड़का ससुराल से आये वस्त्र पहनकर धार्मिक कार्यक्रम संपन्न करता है। इसके बाद भोज का आयोजन होता है। जिसमें मेहमानों व समाज के लोगों के बीच पान, मखान के साथ मिष्ठान का वितरण किया जाता है। इस दौरान समाज के लोग आपसी दुश्मनी व वैर की भावना को भूल एक-दूसरे के दरवाजे पर जाते हैं तथा पान, मखान व मिष्ठान मांग कर खाते हैं। यही कारण है कि इस पर्व को मिथिला में भाईचारा का महान पर्व माना जाता है।

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