देश के लिए नजीर बन सकता है नालंदा कोर्ट का फैसला, जानें क्यों नाबालिग की शादी को बताया वैध

By Team Live Bihar 91 Views
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Desk: किशोर न्याय परिषद नालंदा के प्रधान न्यायाधीश मानवेन्द्र मिश्रा ने नाबालिग प्रेमी जोड़े की शादी को जायज ठहराया है। शुक्रवार को न्याय परिषद ने यह फैसला नवजात एवं उसकी मां के जीवन की सुरक्षा को देखते हुए लिया है। नाबालिग की शादी को मान्यता देने वाला देश का यह पहला फैसला है। इस मामले की सुनवाई दो साल चली। साथ ही किशोर न्याय परिषद ने यह शर्त लगा दी है कि नाबालिग की शादी के दूसरे मामले में इस फैसले की नजीर बाध्यकारी नहीं होगी।

अपहरण का आरोप लगा दर्ज कराई थी एफआइआर

नालंदा जिले के नूरसराय थाना क्षेत्र के एक गांव की 16 वर्षीया एक लड़की दूसरी जाति के 17 वर्षीय प्रेमी के साथ भाग गई थी। किशोरी के पिता ने किशोर, उसके माता-पिता एवं दो बहनों को नामजद करते हुए शादी की नीयत से नाबालिग लड़की का अपहरण करने का आरोप लगा स्थानीय पुलिस थाने में केस दर्ज करा दिया था। मामला किशोर न्याय परिषद को स्थानांतरित कर दिया गया था। अनुसंधान के क्रम में आरोपित किशोर की मां, पिता एवं दोनों बहनों पर इस अपराध में संलिप्त रहने का आरोप सिद्ध नहीं हुआ।

कथित अपहृता ने भी घटना के छह महीने बाद 13 अगस्त 2019 को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर कहा कि उसका अपहरण नहीं हुआ था, वह स्वेच्छा से प्रेमी संग भागी थी। उसने कहा कि मेरे माता-पिता मेरी इच्छा के विरुद्ध शादी करना चाहते थे। किशोरी ने कोर्ट से कहा कि मैं प्रेमी के साथ शादी कर पिछले छह महीने से दम्पति के रूप में बाहर रह रही हूं। इस दौरान मैं गर्भवती भी हो गई थी, लेकिन गर्भपात हो गया। अब वह फिर चार माह के नवजात बच्चे की मां है। इधर, आरोपी किशोर ने भी किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था।

बोले पिता, मैं नहीं मानता उसे अपनी बेटी

न्यायाधीश ने पाया कि लड़की के पिता उसे अपनाने से इनकार कर चुके हैं। लड़की की उम्र 18 और लड़के की 19 वर्ष हो चुकी है। लड़की को उसके पिता के घर जाने के लिए बाध्य भी नहीं किया जा सकता। पिता का कहना है कि अब वे बेटी को भूल चुके हैं और उसे बेटी नहीं मानते। ऐसे में उसे पिता के घर भेजा गया तो ऑनर किलिंग की घटना की संभावना है। ऐसे में लड़की, उसका चार माह का पुत्र के सर्वोत्तम हित को देख इस शादी को जायज माना। उसे अपने पति के घर जाने की अनुमति दी। उसके सास-ससुर को निर्देश दिया कि अपनी बहू एवं पोते की उचित देखभाल करे एवं उपचार कराएं। आरोपित किशोर को भी इसलिए आरोप मुक्त कर दिया क्योंकि उसे बाल सुधार गृह में रखने के निर्णय से उसके परिवार के बिखरने का खतरा है। कोर्ट ने पाया कि वह पत्नी और बच्चे की उचित देखभाल करने में सक्षम है।

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