Desk: बिहार की राजनीति (Bihar Politics) में यह बड़ी घटना है। एक पूरी की पूरी पार्टी का दूसरी पार्टी में विलय हो गया और इसके तुरंत बाद पहले वाली पार्टी के मुखिया रहे राजनेता को राज्य के उच्च सदन में भेज उसके मंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया गया। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के जनता दल यूनाइटेड (JDU) में विलय और उसके मुखिया रहे उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) में भेजे जाने की। कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के साथ, फिर विरोधी रहे कुशवाहा की इस घर वापसी के मायने तो अब तलाशे ही जाएंगे।
कुशवाहा को इतनी तवज्जों क्यों दे रहा है जेडीयू?
कहने को तो उपेंद्र कुशवाहा ‘बिना शर्त’ जेडीयू में शामिल हुए हैं, लेकिन आते ही उन्हें जेडीयू संसदीय बाेर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। फिर बुधवार को उन्हें राज्यपाल कोटे की सीट पर विधान पार्षद (MLC) बनाया गया। ऐसे में प्रथमदृष्टया लगता है कि सबकुछ पहले से तय है। उनके विधान पार्षद बनने के बाद अब इस कयास को बल मिल रहा है कि आगे उन्हें बिहार सरकार में मंत्री (Minister) का पद दिया जा सकता है। सवाल यह है कि जेडीयू कुशवाहा को इतनी तवज्जों क्यों दे रहा है?
दरअसल कहा जा रहा हैं कि कुशवाहा जाती को बिहार में एक बड़ा वोट बैंक के रुप में देखा जाता है. यहीं वजह है कि उपेंद्र कुशवाहा को इतना तवज्जों मिल रहा हैं.
राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश में नीतीश
विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की खिलाफत से जेडीयू को भारी नुकसान पहुंचा, यह पार्टी के नेता समय-समय पर स्वीकार कर चुके हैं। चुनाव में जेडीयू को 28 सीटों का घाटा हुआ और वह केवल 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। इसके बाद बीजेपी ने चुनाव पूर्व वादे के अनुसार नीतीश को मुख्यमंत्री तो बनाया, लेकिन उनकी वह पहले वाली राजनीतिक मजबूती नहीं रही। इसके बाद से नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की कोशिश में लगे हैं।
कई मुद्दों पर घेर रही बीजेपी, दिए स्पष्ट संकेत
इस बीच बीजेपी सरकार में रहते हुए भी कानून व्यवस्था (Law and Order) के मुद्दे पर मुख्यमंत्री को घेरती नजर आई है। गौरतलब यह है कि कानून-व्यवस्था के लिए जवाबदेह गृह विभाग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ही पास है। बीजेपी ने नीतीश के करीबी माने जाने वाले अपनी पार्टी के उपमुख्यमंत्री रहे सुशील मोदी (Sushil Kumar Modi) को भी केंद्र की राजनीति में भेज कर स्पष्ट संकेत दिए।
बिहार में कुशवाहा वोट बैंक पर सबकी रही नजर
अब बात उपेंद्र कुशवाहा की। बिहार की सियासत में कुशवाहा वोट बैंक का अपना महत्व है। पिछड़ों की राजनीति में राष्ट्रीय जनता दल के एमवाई (Muslim-Yadav) समीकरण की काट में नीतीश कुमार का लव-कुश (Lav-Kush) समीकरण सफल रहा है। कुशवाहा के नीतीश कुमार से अलग होने के बाद यह समीकरण टूट गया था।अब बदले राजनीतिक हालात में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस समीकरण की मजबूती याद आई। दरअसल, पिछड़े वर्ग में यादव के बाद आबादी के लिहाज से दूसरा बड़ा तबका कुशवाहा ही है। इस वोट बैंक पर सभी राजनीतिक दलों व गठबंधनों की नजर रही है।
कुशवाहा को भी थी राजनीतिक आधार की जरूरत
उधर, उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए छोड़ने के बाद महागठबंधन (Mahagathbandhan) का रूख किया, लेकिन यहां भी कुछ खास हासिल नहीं कर सके। फिर, बीते विधानसभा चुनाव में अपना गठबंधन बना मैदान में कूदे, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद राजनीति के हाशिए पर जाते कुशवाहा को भी आधार की जरूरत थी।
बातचीत में बन गई बात, इसमें दोनों का लाभ
अपने-अपने आधार को मजबूत करने की कोशिश में लगे नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के बीच सेतु बने जेडीयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह। फिर, बातचीत का लंबा दौर चला और बात बन गई। अब दोनों के साथ आने के बाद इतना तो तय है कि जाति आधारित बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को कुशवाहा वोटों का बड़ा संबल मिल गया है। उधर, उपेंद्र कुशवाहा भी राजनीति की मुख्य धारा में लौट आए हैं।
नीतीश सरकार में मंत्री बनाए जा सकते हैं कुशवाहा
अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा? कुशवाहा कहते हैं कि वे राज्य व देश के हित में नीतीश कुमार के साथ बिना शर्त आए हैं। खुद नीतीश कुमार भी यह कह चुके हैं। लेकिन जेडीयू में आते हीं उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। फिर एमएलसी बनाया गया है। इससे हाल के दिनों की इस चर्चा को बल मिलता है कि आगे कुशवाहा को बिहार सरकार में किसी महत्वपूर्ण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है।
शिवानंद बोले: अब नहीं रही सिद्धांत की राजनीति
उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार के साथ आने पर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) तथा नीतीश कुमार (Nitish Kumar) दोनों के साथ काम कर चुके आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी (Shivanand Tiwari) तीखी प्रतिक्रिया देते हें। वे कहते हैं कि अब सिद्धांत नहीं, सत्ता की राजनीति हो रही है।